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कहाँ तक कही जाय माटी की महिमा, तुला कहाँ है वह, तोलें कैसे? किससे तुलना करें माटी की
यहाँ पर ? तोल-मोल का अर्थ द्रव्य से नहीं, वरन् भाव, गुण-धर्म से है।"
कुम्भ का इतना कहना ही पर्याप्त था कि माटी की दो-दो तोले की दो-दो गोलियाँ बना पूड़ियाँ-सी उन्हें आकार दे कर दोनों आँखों के ऊपर रखी गई, और कुछ ही पलों में वैद्यों ने देखे
सफलता के लक्षण : सो घड़ी-घड़ी के बाद नाभि के निचले भाग पर भी रुक-रुक, पलट-पलट कर दिन में और रात्रि में छह-सात वार, छह-सात बार यही प्रयोग चलता रहा, यथाविधि ।
माटी के सफल उपचार से चिकित्सक-दन प्रभावित हो, भोजन-पान के विषय में भी अपना अभिमत बनाता है कुम्भ के अनुरूप, कि भाटी के पात्र में तपा कर
11 :: मूक माटी