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आँखें खुल नहीं पा रहीं अभी. प्रकाश को देखने की क्षमता अभी उनमें आई नहीं है। रत्नों की कोमल किरणें तक
एकी बिगड़ी सी लगती हैं, अनखुली आँखों को लख कर कुम्भ ने पुनः कहा कि "कोई चिन्ता की बात नहीं
मात्र हृदय स्थल को छोड़ कर शरीर के किन्हीं भी अवयवों पर माटी का प्रयोग किया जा सकता है।
पक्वापक्व रुधिर से भरा घाव हो, भीतरी चोट हो या बाहरी, असहनीय कर्ण - पीड़ा हो, ज्वर से कपाल फट रहा हो, नासा की नासूर हो, शीत से बहती हो
या उष्णता से फूटती हो वह और
शिरःशूल आधा हो या पूरा
इन सब अवस्थाओं में
माटी का प्रयोग लाभप्रद होगा । यहाँ तक कि
हस्त पाद की अस्थि टूटी हो माटी के योग से जुड़ सकती हैं
अविलम्ब !
कुछ ही दिनों में पूर्ववत्
कार्यारम्भ !
मूक घाटी 405