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दूध को पूरा शीतल बना पेय के रूप में देना है रोगी को,
किंवा
उसी पात्र में अनुपात से जामन डाल दूध को जमा कर
"
मथानी से मथ मथ कर
पूरा नवनीत निकाल
निर्विकार तक का सेवन कराना है।
मुक्ता-सी उजली-उजली
मधुर- पाचक- सात्त्विक
कर्नाटकी ज्वार की
रवादार दलिया जो
अधिक पतली न हो तक के साथ देना है
पूर्वाह्न के काल में,
सन्ध्याकाल टाल कर
क्योंकि
सन्धि-काल में सूर्य-तत्त्व का
अवसान देखा जाता हैं
और
सुषुम्ना यानी
उभय-तत्त्व का उदय होता है
जो
ध्यान-साधना का
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उपयुक्त समय माना गया है योग के काल में भोग का होना
रोग का कारण है,
और
भोग के काल में रोग का होना शोक का कारण है ।
मूक पाटी : 407