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________________ दूध को पूरा शीतल बना पेय के रूप में देना है रोगी को, किंवा उसी पात्र में अनुपात से जामन डाल दूध को जमा कर " मथानी से मथ मथ कर पूरा नवनीत निकाल निर्विकार तक का सेवन कराना है। मुक्ता-सी उजली-उजली मधुर- पाचक- सात्त्विक कर्नाटकी ज्वार की रवादार दलिया जो अधिक पतली न हो तक के साथ देना है पूर्वाह्न के काल में, सन्ध्याकाल टाल कर क्योंकि सन्धि-काल में सूर्य-तत्त्व का अवसान देखा जाता हैं और सुषुम्ना यानी उभय-तत्त्व का उदय होता है जो ध्यान-साधना का I उपयुक्त समय माना गया है योग के काल में भोग का होना रोग का कारण है, और भोग के काल में रोग का होना शोक का कारण है । मूक पाटी : 407
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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