________________
:::: ...::..
मूल में तो, 'ली' का ही प्रयोग है यानी 'धैरखली' ही है। इस पर भी ऋमिः .. ... ..... : वैखरी यही पाठ स्वीकृत होतो हम इसका अर्थ भिन्न पद्धति से लेते हैं, कि 'ख' का अर्थ होता है शून्य, अभाव ! इसलिए 'ख' को छोड़ कर शेष बचे दो अक्षरों को मिलाने पर शब्द बनता है 'वैरी दुर्जनों की वाणी बह, स्व और पर के लिए वैरी का ही काम करती है अतः उसे बैं-खली या वैरी मानना ही समुचित है
"समस्तु !
सहज भाव से शुद्ध उच्चारण के साथ शुद्ध तत्त्व की स्तुति की, सेठ ने। परिवार के साथ वार्ता हुई, वैद्यों का भी परिचय मिला वेदना का अनुभव बता दिया, परन्तु अविकल-चलन के कारण
114 :: मूक पाटी