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वह चरण पूज्य होते हैं जिन चरणों की पूजा ऑंखें करती हैं गन्तव्य तक पहुँचाने वाले
चरणों का मूल्य आँकती हैं ये ही मानी जाती सही आँखें चरण की उपेक्षा करने वाली स्वैरिणी आँखें दुःख पाती हैं स्वयं चरण - शब्द ही उपदेश और आदेश दे रहा हैं हितैषिणी आँखों को, कि
चरण को छोड़ कर
कहीं अन्यत्र कभी भी
चर न चर न !! चर न !!! इतना ही नहीं,
विलोम रूप से भी
ऐसा ही भाव निकलता है,
यानी
चरण नर
चरण को छोड़ कर
कहीं अन्यत्र कभी भी
न रच! न रच ! न रच !"
हे भगवन् !
मैं समझना चाहता हूँ कि
आँखों की रचना वह
ऐसे कौन से परमाणुओं से हुई है
जब आँखें आती हैं तो
दुःख देती हैं,
जब आँखें जाती हैं तो
दुःख देती हैं !
कहाँ तक और कब तक कहूँ,
एक मादी : 554