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साधक की ओर दौड़ती-सी लगती है सरोज की ओर रवि किरणावली-सी। कुछेक दिन तक . . : ... . . ... . .. ... .. बीच-बीच में रुक-रुक कर विजली की कौंध-सी चलित-विचलित हो शान्त होती गई बाहर से वाद-विवाद की स्थिति, इन पात्रों की। भीतरी बात दूसरी है अवा की ऊष्मा-सी वह तो बनी ही रहती प्रायः तन-धारकों में, सब में।
एक पक्ष का संकल्प जो था सो सम्पन्न हुआ सानन्द, और कृष्ण-पक्ष का आगमन हुआ। दैनिक कार्यक्रमों से निवृत्त हो निद्रा की गोद में सो रहा पूरा परिवार, परन्तु बार-बार करवटें ले रहा सेठ, निद्रा की कृपा उस पर नहीं हुई,
और निशा कट नहीं रही है,
बहुत लम्बी-सी लग रही वह । सेठ का तन आमूल-चूल तवा-सम तप रहा है लगभग जलांश जल चुका है तभी तो रुक-रुक कर रुदन होने पर भी
मूक पाटी ::
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