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कारण, कपाल तक पहुंचते ही मच्छर की प्यास दुगुणी हो उठी, । अंग पूरा तप गया, कण्ठ पूरी सूख गया, पंख दोनों शिथिल हुए,
और उत्कण्ठा कहीं उड़ गई ।
और मच्छर वह गुनगुनाहट के मिष यूँ कहता हुआ उड़ गया, कि
"अरे, धनिकों का धर्म दमदार होता है, उनकी कृपा कृपणता पर होती है, उनके मिलन से कुछ मिलता नहीं, काकी काय से : :: :... :..: कुछ मिल भी आय वह मिलन लवण-मिश्रित होती है
पल में प्यास दुगुणी हो उठती है। सर्वप्रथम प्रणिपात के रूप में उनकी पाद-पूजन की, फिर स्वर लहरी के साथ गुणानुवाद-कीर्तन किया उनके कर्ण-द्वार पर। फिर भी मेरी दुर्दशा यह हुई !"
अपने मित्र मच्छर से सेट की निन्दा सुन कर दक्षिणा के रूप में रक्त-ब्रूट का प्यासा
मूक माटो :: 385