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उसकी आयत आँखों में आँसुओं का आना रुक गया है और अन्दर का आर्त अन्दर ही अवरुद्ध हो घुट रहा है। बार-बार पलकों की टिमकार से आँखों में जलन का अनुपात बढ़ रहा है मन्द-मन्द एनर-नालन से .. .. . : ... ... .... .... ... .... प्रथम तो अग्नि सुलगती है, फिर, प्रबल प्रदीप्त होती ही है।
यद्यपि इस बात का प्रबन्ध है कि सेठ जी के शयन-कक्ष में खिड़कियों से हो-हो कर मन्द-शीतल-शीलगला पवन प्रवेश पाता है प्रतिपल
परन्तु,
सेठ के मुख से निकलती हुई उष्णिल श्वासों की लपटों से पूरा माहौल धगधगाहट में
बदल ही जाता है। कृपा-पालित कपाल से पलायित-सी हुई कृपा
और लाल-लोहित कपाल बना सेठ का, जिस पर बैठने को मचलता हुआ भी, एक मच्छर जो रुधिर-जीवी है, घबरा रहा है, बैत नहीं रहा ।
SHA :: मूक माटी