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और वेतन का वितरण भी अनुचित ही। वे अपने को बताते मनु की सन्तान ! महामना मानव !. .. दने का नाम सनते हो इनके उदार हाथों में पक्षाघात के लक्षण दिखने लगते हैं, फिर भी, एकाध बूँद के रूप में जो कुछ दिया जाता या देना पड़ता
वह दुर्भावना के साथ हीं। जिसे पाने वाले पचा न पाते सही अन्यथा हमारा रुधिर लाल होकर भी इतना दुर्गन्ध क्यों ?"
और रुष्ट हुए बिना मत्कुण बह दक्षिणा की आशा से विरत हो प्रदक्षिणा-कार्य तज कर सेट को कहता है, कि "सूखा प्रलोभन मत दिया करो स्वाश्रित जीवन जिया करो, कपटता की पटुता को जलांजलि दी ! गुरुत्ता की जनिका लघुता को श्रद्धांजलि दो ! शालीनता की विशालता में आकाश समा जाय और
मूक माटी :: 317