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प्रासंगिक परिचर्चा में पर्याप्त परिवर्तन लाता है
और कुछ निवेदन करता है कि, चीच में ही माटी का कुम्भ बोल पड़ा : “जहाँ तक पथ्य की बात है सो" सब चिकित्सा-शास्त्रों का
एक ही मत है, बसपथ्य का सही पालन हो तो औषध की आवश्यकता ही नहीं, और यदि पथ्य का पालन नहीं हो"तो भी औषध की आवश्यकता नहीं।
इस पर भी यदि औषध की बात पूछते हो,
सुन लो ! तात्कालिक तन-विषयक-रोग ही क्या, चिरन्तन चेतन-गत रोग भी
जनन-जरन-मरण रूप है नव-दो-ग्यारह हो जाता है पल में, श, स, प ये तीन बीजाक्षर हैं इनसे ही फूलता-फलता है वह आरोग्य का विशाल-काय वृक्ष ! इनके उच्चारण के समय पूरी शक्ति लगा कर
मूक माटी :: 397