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यह उपचार तो स्वतन्त्र है अपव्ययी नहीं, मितव्ययी है। इसके प्रयोग से
किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं होती तन और मन के किसी कोने में ।
जल से भरे पात्र में
गिरा तप्त लौह-पिण्ड वह
चारों ओर से जिस भाँति
छूने को मन मचले ऐसी छनी हुई कुंकुम-मृदु- काली माटी में नपा- तुला शीतल जल मिला,
उसे ध-रौंध कर
जल को सोख लेता है,
उसी भाँति टोप भी
मस्तक में व्याप्त उष्णता को
एकमेक लोंदा बना,
एक टोप बना कर मूर्च्छा के प्रतिकार हेतु सर्व प्रथम,
सेठ जी के सर पर चढ़ाया गया।
प्रति-पल पीने लगा ।
ज्यों-ज्यों उष्णता का अनुपात
41000 सुक माटी
Re:
घटता गया
त्यों-त्यों जागृति का प्रभात
प्रकटता गया |
A: