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निशा का बिखरना
और ऊषा का निखरना अति मन्द गति से हुआ। प्रतीक्षा की घड़ियाँ, बहुत लम्बी हुआ करती हैं ना ! और वह भी दुःख भरी वेला मेंकहना ही क्या !
वैसे,
सुख का काल अकूल सागरोपम भी सरपट भागता है अनन्य गति से, पता नहीं चलता कब किस विध और कहाँ
चला जाता वह ? प्रभातकाल की बात है: एक-से-एक अनुभवी चिकित्सा-विद्या-विशारद विश्वविख्यात वैद्य सेठ की चिकित्सा हेतु आगत हैं, जिनमें ऐसे भी मेधावी हैं जो रोगी के मुख-दर्शन मात्र से रोग का सही निदान कर लेते हैं; कुछ तो रोगी की रसना का रंग-रूप लख कर ही, कुछ नाड़ी की फड़कन से
पूक माटी ::389