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और नख-दृग-लालिमा की तर-तमता से रोग को पहचान पाते हैं। एक वैद्य वह भी आया है जिसने अपने जीवन में परम-पुण्य का पाक पा कर सुदीर्घ साधना-साधित अनन्य-दुर्लभ वर-बोध में सफलता पाई है। मन्त्र-तन्त्रवेत्ता, अरिष्ट-शास्त्र का वरिष्ट ज्ञाता भी हैं।
सबने अपनी-अपनी विधाओं से सेड का निरीक्षण किया, रुक-रुक कर अर्द्ध-मूछित-सी दशा हो आती है, निद्रा से घिरी-सी काया की चेष्टा है
पर, वचन की चेष्टा नहीं के बराबर : क्रमश: सबने अपने-अपने निर्णय लिये सबका अभिमत एक रहा
दाह का रोग हुआ है आहू का योग हुआ है, एक ही दिशा में एक ही गति से चाह का भोग हुआ है। और
330 :: मृक माटी