________________
चिकित्सकों का कहना हुआइन्हें इतनी चिन्ता नहीं करनी चाहिए थोड़ी-सी
तन की भी चिन्ता होनी चाहिए,
तन के अनुरूप वेतन भी अनिवार्य है, मन के अनुरूप विश्राम भी ।
मात्र दमन की प्रक्रिया से
कोई भी क्रिया वह फलवती नहीं होती है, केवल वेतन चैतमा ले चिन्तन-मनन से
कुछ नहीं मिलता !
I
प्रकृति से विपरीत चलना साधना की रीत नहीं है बिना प्रीति, विरति का पलना साधना की जीत नहीं है, 'भीति बिना प्रीति नहीं इस सूक्ति में
एक कड़ी और जुड़ जाय ।
तो बहुत अच्छा होगा, कि
'प्रीति बिना रीति नहीं
और
रीति बिना गीत नहीं'
अपनी जीत का - साधित शाश्वत सत्य का ।
यह बात सही है कि
पुरुष होता है भोक्ता
और
भोग्या होती प्रकृति ।
मूकमाटी 391