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अन्त में
यह भी ज्ञातव्य है कि
प्रकृति में वासना का वास ना है सुरभि यानी
नाड़ी के विलय में
पुरुष का जीवन ही समाप्त !
सुवास का वास अवश्य है । विविध विकार की दशा में
पुरुष वासना का दास हो वासना की तृप्ति हेतु परिक्लान्त पधिक की भाँति
प्रकृति की छाँव में
आँखें बन्द कर लेता हैं,
और
यह अनिवार्य होता हैं पुरुष के लिए तब !
इमली का सेवन तो दूर रहे
इमली का स्मरण भी
मुख में पानी लाता है स्वस्थ के नहीं,
प्यास से पीड़ित पुरुष के । यह तो स्वाभाविक है,
किन्तु
आश्चर्य की बात तो यह है, कि
भोक्ता के मुख में जा कर भी कभी भी...
इमली के मुख में पानी नहीं आता । हाँ! हाँ !
रक्ता - आसक्ता-सी लगती है। पुरुष में प्रकृति तब !
पूक माटी 998