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जीवन उदारता का उदाहरण बने ! अकारण हीपर के दुःख का सदा हरण हो !" अन्त में अपना मन्तव्य और रखता है मत्कुण :
मैं कण हूँ, मन नहीं, में धन नहीं है, अत: ... ... ... ... किसी के मरण का कारण रण नहीं हूँ। मैं ऋणी नहीं हूँ किसी का बली भी नहीं हूँ, न ही किसी के बल पर जी रहा हूँ, जीना चाहता हूँ ! मैं बस हूँ" ऐसा ही रहना चाहता हूँ। मेरे पास न कोई मन्त्र है, न यन्त्र न ही कोई षड्यन्त्र। मेरा समग्र जीवन नियन्त्रित हैं। मैं छली नहीं हूँ, किसी के छिद्र देखता नहीं छिद्र में रहता अवश्य !"
और छोटे से छिद्र में जा
प्रविष्ट होता है मत्कुण। मत्कुण के माध्यस्थ मुख से मौलिक वचन सुन कर सेट का मन मुदित हो उठा, और प्रशिक्षित भी !
8 :: मूक पाटी