________________
-
उच्च-नीच भेद-भाव है स्वर्ण और माटी का पात्र एक नहीं है अभी
समता का धनी हो नहीं सकता वह !
एक के प्रति राग करना ही दूसरों के प्रति द्वेप सिद्ध करता हैं,
जो रागी है और द्वेषी भी,
सन्त हो नहीं सकता वह और
नामधारी सन्त की उपासना से संसार का अन्त हो नहीं सकता, सही सन्त का उपहास और होगा: S ये वचन कटु हैं, पर सत्य हैं, सत्य का स्वागत हा !"
फिर,
सेठ की उपहास की दृष्टि से देखता हुआ कलश कहता है कि "गृहस्थ अवस्था में
नामधारी सन्त बह अकाल में पला हुआ हो
अभाव-भूत से घिरा हुआ हो
फिर भला कैसे हो सकता है बहुमूल्य वस्तुओं का भोक्ता : तभी तो....
दरिद्र नारायण सम
स्वर्णादि पात्रों की उपेक्षा कर
माटी का ही स्वागत किया है।
425 :: 369