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झारी में भरा अनार का रस वह और लाल हो उठा। अपने सम्मुख स्वामी के अपमान को देख क्या सही सेवक तिलमिलाता नहीं ? आधार का हिलना ही आधेय का हिलना है। और उत्तेजित स्वर में रस कहता है कि, "सेठ की शालीनता की मात्रा, श्रमण की श्रमणता समता-सलीनता की छवि कितनी है, किस कारण हैयह सब ज्ञात है हमें। पानी कितना गहरा है
तट-स्पर्श से भी जाना जा सकता है।" और . . . . . . . . . . .. . सीसम के श्यामल आसन पर चाँदी की चमकती तश्तरी में पड़ा-पड़ा केसरिया हलवाजिस हलवे में एक चम्मच शीर्षासन के मिष अपनी निरुपयोगिता पर लज्जित मुख को छुपा रहा है, अनार का समर्थन करता हुआ कहता है
कि
श्रमण की सही भीमांसा की तुमने
और सन्त से उपेक्षित होने के कारण घृत की अधिकता के मिष डबडबाती आँखों से रोता-सा ।
मूक माटी :: :379