________________
:::: :...'
नीचे गहन हैग्थान गता है,
वस. ध मशाल है। मशाल कं मुख पर माटी मली जाती है । असंयत होता है, इसलिए। मशाल से प्रकाश मिलता है पर अत्यल्प ! .......... ......:.: :: उससे अग्नि की लपटें उठती हैं, राक्षस की लाल रमना-सी सुन लपटों को ज्योति नहीं कई मकन। मशाल अपव्ययी भी है, बार-बार तेल डालना पड़ता है उसकं मुख पर, वह भी मीठा तेल मन्यवान्।
हाँ ! हाँ ! कभी-कभी मनोरंजन के समय पर मशाल ल चलने वाला पुरुष अपने मन में मिट्टी का तेल भर कर आकाश में सुदर''हाथ उटा कर मशाल के मुख पर 'कता है, "तव एकाव पल में ही तेन सारा जल कर काल-काले बादल-से धूम के रूप में शुन्य में हीन-विलीन होता है। और मशान लगता है प्रनय कालीन अग्निकाण्ड-सम भयंकर ! घोड़ी-सी असावधानी "नो हा-हाकार, हानि-सा हानि:
आ . J7 पार