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दीपक से चल सकता है प्रेम से। मशाल की अपेक्षा
अधिक प्रकाशप्रद है यह । उष्ण उच्छृंखल प्रलय-स्वभावी मिट्टी का तेल भी यह
दीपक का स्नेह पा कर
ऊर्ध्वगामी बनता है। पथ-भ्रष्ट एकाकी
अन्धकार से घिरा भयातुर कारी श्री
प दीपक को देखते हो अभीत होता है।
सुना श्मशान में,
भूतों के हाथ में मशाल होता है जिसे देखते ही
निर्भीक की आँखें भी बन्द होती है।
37 पाटी
लो, दीपक की लाल लौ
अग्नि-सी लगती, पर अग्नि नहीं स्व-पर- प्रकाशिनी ज्योति है वह जो स्पन्दनहीना होती है
जिसे अनिमेष देखने से साधक का उपयोग वह नियोग रूप से,
स्थूलता से सूक्ष्मता की ओर बढ़ता बढ़ता, शनैः शनैः
व्यग्रता से रहित हो
एकाग्र होता है कुछ ही पलों में ।
फिर, फिर क्या ?
समग्रता से साक्षात्कार !
दीपक की कई विशेषताएँ हैं कहाँ तक कहूँ !