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दोषों का स्वागत करना है !"
और
मुख मोड़ लेती है झट से कुम्भ की ओर से झारी ।
"मेरे साथ वोलना भी यदि पाप है तो मत बोलो, मुझे देखने से यदि
ताप हो तो मत देखो,
परन्तु
अपनी बुद्धि से पाप के विषय में जो कुछ निर्णय लिया है तुमने वह विपरीत है
बस यही बताना चाहता हूँ । कम-से-कम इसे सुन तो लो !
कर्मदर्शक :- अश्री फितलो !"
और
कुम्भ का सुनाना प्रारम्भ हुआ 'स्व' को स्व के रूप में
'पर' को पर के रूप में
जानना ही सही ज्ञान हैं,
और
'स्व' में रमण करना
सही ज्ञान का 'फल' ।
विषयों का रसिक भोगों उपभोगों का दास,
इन्द्रियों का चाकर
और और क्या? तन और मन का गुलाम ही
पर-पदार्थों का स्वामी बनना चाहता है,
मूकमाटी 370