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माटी को माथे पर लगाना
और
मुकुट को पैरों में पटकना
यह सब
सभ्य व्यवहार-सा लगता नहीं अपने प्रति अपनत्व का भाव तो दूर, उपरिल उपचार से भी
अपनाने का भाव तक यहाँ दिखता नहीं,
यह अपने आप फलित हो रहा है।
इस बात को मैं मानता हूँ, कि
अपनाना
अपना प्रदान करना
और
अपने से भी प्रथम समझना पर को
यह सभ्यता है, प्राणी मात्र का धर्म; परन्तु यह कार्य
यथाक्रम यथाविधि हो
इस आशय को और खोलूँउच्च उच्च्च ही रहता
नीच नीच ही रहता
ऐसी मेरी धारणा नहीं है,
नीच को ऊपर उठाया जा सकता है,
उचितानुचित सम्पर्क से
सबमें परिवर्तन सम्भव है I
परन्तु ! यह ध्यान रहे
शारीरिक, आर्थिक, शैक्षणिक आदि
सहयोग - मात्र से
नीच उच्च बन नहीं सकता
इस कार्य का सम्पन्न होना
सात्त्विक संस्कार के ऊपर आधारित है।
मूक पाटी
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