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यह लेखनी भी देती है सामयिक कुछ पंक्तियाँ : गम से यदि भीति हो
तो सुनो !
श्रम से प्रीति करो
और
अहं से यदि प्रीति हो तो सुनो ! चरम से भीति धरो
कुम्भ के निखिल अर्पण में सन्त का आभार हुआ है ।
शम धरो सम वरो !
सिद्ध मन्त्र की महिमा से
तन में व्याप्त विष-सम
सेठ की आकुल व्याकुलता मिटी चली गई कहीं । और, सेठ ने कहा कि "प्रभु-पूजन को छोड़ कर
इस पक्ष में अतिथि के समान
माटी के पात्रों का उपयोग होगा"
और
रजत- आसन से उतर कर
काष्ठ के आसन पर आसीन हुआ । यह सुन कर परिवार ने भी कहा"हमारी भी यही भावना है ।"
परिवार की परिवर्तित परिणति देख स्वर्ण की थालियों और गोल-गोल कलशियाँ
मूकमाटी 355