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और क्या कहा कुम्भ ने
सां""सुनो ! "जैसे
औषध सेवन करने वाला रोगी जिसकी उपास्य देवता नीरोगता हैं, भोगी हो नहीं सकता वह, भोग ही तो रोग है ।
और सुनो ! यह औषध का नहीं, सही निदान का चमत्कार है,
औषध सेवन का फल तो रोग का शोधन है-नीरोगता अनमोल सोधन हैं । "
आमरण आभूषणों की बात दूर रहे, वृद्धावस्था में ढाका - मलमल भी भार लगती है जब कि
बाल हो या युवा
प्रोढ़ हो या वृद्ध
वनवासी हो या भवनवासी
वैराग्य की दशा में
स्वागत आभार भी
"भार लगता है। "
मदन का प्यार कभी जरा से हो नहीं सकता;
सन्तों की ये पंक्तियाँ भी अप्रासंगिक नहीं है :
गगन का प्यार कभी धरा में हो नहीं सकता
मूत्र माटी 35