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सिसकते शिशु की तरह दीर्घ-श्वास लेता हुआ घर की ओर जा रहा सेठ वसन्त का अन्त होने से विकलित वन-जीवन-बदन-सम सन्त-संगति से वंचित हुआ घर की ओर जा रहा सेठ हरियाली को हरने वाली मृग-मरीचिका से भरी सुदूर तक फैली मरुभूमि में सागर-मिलन की आस-भर ले ... . बलहीन सपाट-तट वाली ' सरकती पतली सरिता-सा घर की ओर जा रहा सेट
प्राची की गोद से उछला फिर अस्ताचल की ओर ढला प्रकाश-पुंज प्रभाकर-सम आगामी अन्धकार से भयभीत
घर की ओर जा रहा सेठ कृण्ण-पक्ष के चन्द्रमा की-सी दशा है सेठ की शान्त-रस से विरहित कविता-सम पंछी की चहक से वंचित प्रभात-सम शीतल चन्द्रिका से रहित रात-सम
और बिन्दी से विकल
मृक माटी :: 351