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'नि' यानी निज में ही 'यति' यानी बतन : स्थिरता है ... .. .. ... ... .... अपने में लीन होना ही निर्यात है निश्चय से वही यति है,
और
'पुरुष' यानी आत्मा-परमात्मा है 'अर्थ' यानी प्राप्तव्य प्रयोजन है आत्मा को छोड़ कर सब पदार्थों को विस्मृत करना ही सही पुरुषार्थ है।
नियति का और पुरुषार्थ का स्वरूप ज्ञात हुआ सही-सही
काल की भाव-धर्मिता जो मात्र उपस्थिति-रूपा प्रेरणा प्रदा नहीं, उदासीना एक-क्षेत्रासीना है
छपी नहीं रही, खुल गई। सेट की शंकाएँ उत्तर पातीं फिर भी
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जल के अभाव में लाघव गर्जन-गौरव-शून्य वर्षा के बाद मौन कान्तिहीन-बादलों की भाँति छोटा-सा उदासीन मुख ले घर की ओर जा रहा सेठ तेल से बाती का सम्बन्ध लगभग टूट जाने से किंवा
मूक माटी ::