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छोड़ दें पुरुषार्थ को: हे परम-पुरुप ! बताओ क्या करूँ , काल की कसौटी पर अपने को कसै क्या ? गति-प्रगति-आगति नति-उन्नति-परिणति इन सबका नियन्ता
काल को मायूँ क्या ? प्रति पदार्थ स्वतन्त्र हैं। कर्ता स्वतन्त्र होता हैयह सिद्धान्त सदोष है क्या ? 'होने' रूप क्रिया के साथ-साथ 'करने' रूप क्रिया भी तो. कोष में है ना !"
सेट की प्रश्नावली सन कर वात्सल्यपूर्ण भाषा में । माँ पुत्र को समझाती-सी, मौन तज कर कहा गरु ने, कि "इन सब शंकाओं का समाधान यहाँ है मेरी ओर इधर"ऊपर देखो !"
और
ऊपर की ओर देखना हुआ गीली आँखों सेमौन-मुद्रा मिली मात्र, मुद्रा में मुस्कान की मात्रा थोड़ी-सी भी मिली नहीं, गम्भीरता से पूरी भरी हैं वह, आँखों में निश्चलता है ललाट पर निश्छलता है वही रहस्योद्घाटन करती-सी."
34R :: मृक माटी