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अबला के 'भान-सम सब कुछ नीरव-निरीह लग रहा है।
ढलान में दुलकते-ढुलकते पाषाण-खण्ड की भाँति घर आ पहुँचता है सेट!
पूरा परिवार अपार हर्ष में डूबा है पात्र-दान का परिणाम है यह पुण्य-शाली कुम्भ भी फूल रहा है। सब एक साथ भोजनार्थ बैठते हैं परन्तु, गौरवर्ण से 'मरा, पर उदासी से घिरा ... सेठ के मुख गौरवशाली कुम्भ ने
गौर से देख कर यूँ कहा, कि "सन्त-समागम की यही तो सार्थकता है संसार का अन्त दिखने लगता है, समागम करने वाला भले ही तुरन्त सन्त-संयत वने या न बने इसमें कोई नियम नहीं है, किन्तु वह सन्तोपी अवश्य बनता हैं। सही दिशा का प्रसाद ही सही यशा का प्रासाद है
चतुर-चिकित्सकों से रोग का सही निदान होने पर
352 :: मूक माटी