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अत्यल्प तेल रह जाने से टिमटिमाते दीपक सम अपने घट में प्राणों को सँजोये मन्थर गति से चल रहा है सेठ
मन में मन्धन भी चल रहा ! मूल-धन से हाथ धो कर खाली हाथ घर लौटते भविष्य के विषय ति किंकर्तव्यविमूढ़ वणिक-सम
घर की ओर जा रहा सेठ..
पूरा का पूरा घृतांश निकल जाने से
स्वयं की नीरसता का अनुभव करता, केवल दूध के समान संवेदनशून्य हुआ
घर की ओर जा रहा सेठ
माँ के विरह से पीड़ित
रह-रह कर
3500 : पूक भाटी
सहपाठियों के समक्ष
पराभव - जनित पीड़ा से भी
कई गुणी अधिक
पीड़ा का अनुभव हो रहा है
इस समय सेठ को ।
डाल के गाल का रस चूसन पूर्णरूप से छूटने से धूल में गिरे फूल सम आत्मीयता का अलगाव साथ ले शेष रहे अत्यल्प साहस समेत घर की ओर जा रहा सेठ