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________________ यह लेखनी भी देती है सामयिक कुछ पंक्तियाँ : गम से यदि भीति हो तो सुनो ! श्रम से प्रीति करो और अहं से यदि प्रीति हो तो सुनो ! चरम से भीति धरो कुम्भ के निखिल अर्पण में सन्त का आभार हुआ है । शम धरो सम वरो ! सिद्ध मन्त्र की महिमा से तन में व्याप्त विष-सम सेठ की आकुल व्याकुलता मिटी चली गई कहीं । और, सेठ ने कहा कि "प्रभु-पूजन को छोड़ कर इस पक्ष में अतिथि के समान माटी के पात्रों का उपयोग होगा" और रजत- आसन से उतर कर काष्ठ के आसन पर आसीन हुआ । यह सुन कर परिवार ने भी कहा"हमारी भी यही भावना है ।" परिवार की परिवर्तित परिणति देख स्वर्ण की थालियों और गोल-गोल कलशियाँ मूकमाटी 355
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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