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________________ कुन्दपुष्प-सम शुभ्र लोो माने - कोरे ... ... ., :.. राकेन्दु-सम रजतिप थालियाँ, कलशियों वढ़ियाँ-बदियाँ स्फटिक की माणिक की झारियों तरह-तरह की तश्तरियाँ चम-चम चम-चम चमकने वाली चमचियाँ यह सब क्या हो रहा है ?" यूँ सोचते चमत्कृत हो गये सब ! फिर""इधर"यह क्या घटा ! शीतल जल से भरा पीतल कलश भीतर-ही-भीतर पीड़ित हुआ पराभव का चूंट पीता-पीता जलता हुआ उबलता और पीलित हुआ। सुवर्ण के द्वार पर श्याम-वरण का स्वागत देख, स्वर्ण-कलश का वर्ण वह और तमतमाने लगा, जिसका वर्णन वर्गों से सम्भव नहीं; आपे से बाहर हुआ। स्वर्ण-कलश की मुख-गुफा से आक्रोश-भरी शब्दावली फूटती हैं साक्षात् ज्वालामुखी का रूप धरती-सी : "आज का दिन भी पूर्ण नहीं हुआ अभी और आगत का इतना स्वागत-समादर ! 31 :: पृक माटी
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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