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लज्जा का अनुभव करती धरती में जा छुपना चाहती है अपने सिकुड़न-शील मुख को दिखाना चाहती नहीं किसी को।
सेट के दायें हाथ की मध्यमा में मुदित-मुखी स्वर्णिम मुद्रा है जो माणिक-मणि से मण्डित है जिमकी विस्तार का ... . . . . . .: अतिथि के अंरुणिम अधरों से बार-बार अपनी तुलना करती और अन्त में हार कर आकुलिता हो लज्जा के भार से अतिथि के पद-तलों को छू रही है, और ऐसा करना उचित ही है पूज्यपदों की पूजा से ही
मनवांछित फल मिलता है। इसी भाँति सेठ के बायें हाथ की तर्जनी में रजत-निर्मित मुद्रा है मुद्रा में मुक्ता जड़ी है। करपात्री की अदृष्टपूर्व कर-नख-कान्ति लख कर क्तान्ति का अनुभव करती है
और ज्वराक्रान्त होती। यही कारण है, उसकी रक्त-रहित शुभ्र-काया बनी हैं;
पान के दोनों कपोल वह गोलगोल है, सुडौल भी
भूक माटी ..