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"तुमने मुझे ऊपर उठा अपना लिया बड़ा उपकार किया मुझ पर और इस शुभ-कार्य में सहयोगी बंद का सौभाग्य मिला मुझः। .. इस पर तुरन्त ही करों ने भी कहा कि "नहीं नहीं, सुनो "सुनो ! उपकार तो तुमने किया हम पर तुम्हारे बिना यह कार्य सम्भव ही नहीं था, इस कार्य में भावना-भक्ति जो कुछ है, तुम्हारी है हम तोऊपर से निमित्त-भर ठहरे !"
उपरिल चर्चा को सुनता हुआ नीचे पात्र का कर-पात्र कहता है कि, “पात्र के बिना कभी पानी का जीवन टिक नहीं सकता,
और पात्र के बिना कभी प्राणी का जीवन टिक नहीं सकता, परन्तु पात्र से पानी पीने वाला उत्तम पात्र हो नहीं सकता पाणि-पात्र ही परमोत्तम माना है,
पात्र भी परिग्रह है ना ! दूसरी बात यह भी हैं, कि अतिथि के बिना कभी तिथियों में पूज्यता आ नहीं सकती अतिथि तिथियों का सम्पादक है ना !
मूक माटी :: 335