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कपोल-तल से फिसलता हुआ, विरोध के रूप में आ खड़े वैरियों के पाषाण-बसरमा गयो भी. . . . . . . ... ..... ... . मृदुल फूल बनाता है। हममें अनमोल बोल पले हैं,
और तुममें केवल पोल मिले हैं।
एक बात और है कि विकसित या विकास-शील जीवन भी क्यों न हो, कितने भी उज्ज्वल-गुण क्यों न हों, पर से स्व की तुलना करना पराभव का कारण है
दीनता का प्रतीक भी। और वह तुलना की क्रिया ही प्रकारान्तर से स्पर्धा है, स्पर्धा प्रकाश में लाती है कहीं"सुदूर"जा"भीतर बैठी अहंकार की सूक्ष्म सत्ता को। फिर, अहंकार को सन्तोष कहाँ ? बिना सन्तोष, जीवन सदोष है यही एक कारण है, कि प्रशंसा-यश की तृष्णा से झुलसा यह सदोष जीवन सहज जय-घोषों की, सुखद गुणों की सघन-शीतल छॉब से वंचित रहता है।
वैसे, स्वयं यह 'स्व' शब्द ही कह रहा है कि
मूक माटी :: 399