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सदा सर्वत्र सब समान अन्धकार हो या ज्योति ।
हाँ हाँ !
!
विषयों का ग्रहण - बोध
इन्द्रियों के माध्यम से ही होता है।
विषयी - विषय - रसिकों को ।
वस्तुस्थिति यह है कि इन्द्रियाँ ये खिड़कियाँ हैं
तन यह भवन रहा है,
भवन में बैठा-बैठा पुरुष भिन्न-भिन्न खिड़कियों से झाँकता है वासना की आँखों से
और
विषयों को ग्रहण करता रहता
दूसरी बात यह है, कि
मधुर, आम्ल, कषाय आदिक जो भी रस हों शुभ या अशुभकभी कहते नहीं, कि हमें चख लो तुम।
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हैं I
लघु-गुरु स्निग्ध- रूक्ष शीत-उष्ण मृदु-कठोर
जो भी स्पर्श हों, शुभ या अशुभ -- कभी कहते नहीं कि
हमें छू लो तुम ।
सुरभि या दुरभि जो भी गन्ध हों, शुभ या अशुभकभी कहतीं नहीं, कि
हमें सूँघ लो, तुम ।
मूकमाटी