________________
तधापि
इस विषय पर विचार करने से विदित होता है कि
इस कार्य में धरती का ही प्रमुख हाथ है। जल को मुक्ता के रूप में ढालने में शुक्तिका सीप कारण हैं
और
सीप स्वयं धरती का अंश है।
स्वयं धरती ने सीप को प्रशिक्षित कर
सागर में प्रेषित किया है। जल को जड़त्व से मुक्त कर
::.
मुक्ता-फल बना पतन के गर्त से निकाल कर
उत्तुंग उत्थान पर धरना, धृति-धारिणी धरा का ध्येय हैं ।
यही दया-धर्म हैं
यही जिया कर्म है
I
फिर भी !
सबकी प्रकृति सही-सुलटी हो यह कैसे सम्भव है ?
जल की उलटी चाल मिटती नहीं वह जल का स्वभाव छल-छल उछलना नहीं है उछलना केवल बहाना है उसका उसका स्वभाव तो छलना है I
मुक्तमुखी हो, ऊर्ध्वमुखी हो सागर की असीम छाती पर
अनगिन शुक्तियाँ तैरती रहती हैं जल- कणों की प्रतीक्षा में
मूक माटी
193