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पर्याप्त पतला पड़ गया वह, दुर्लभता इसी की तो कहते हैं। कुछ दाताओं के मुख से कुछ भी शब्द नहीं निकले
मन्त्र-मुग्ध कीलित-से रह गये। कुछ तो विधि-विस्मरण से विकल हो गये,
और
कपाल पर बार-बार हाथ लगाते हैं, वह ऐसा प्रतीत हो रहा है, कि कहीं प्रतिकूल भाग्य को डाँट-डाँट कर भगा रहे हों।
"हे महाराज ! विधि नहीं मिली, तो नहीं सही कम-से-कम इस ओर देख तो लेते, इतने में ही सन्तोष कर लेते हम" यूँ एक दाता ने मन की बात
सहज-भाव से सुना दी। दाता के कई गुण होते हैं उनमें एक गुण विवेक भी होता है
एक दाता ने विवेक ही खो दिया और भक्ति-भाव के अतिरेक में पात्र के अति निकट पथ पर आगे बढ़ दयनीय शब्दों में कहा कि "इस जीवन में इसे पात्रदान का सौभाग्य मिना नहीं,
मूक मादी :: 317