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कविता-श्रवण ने उसे बहुत प्रभावित किया। पुनः संकेत मिलता है सेठ कोअब शत-प्रतिशत निश्चित है पान का अपनी ओर आना। जैसे-जैसे प्रांगण मास आता गया वैसे-वैसे पात्र की गति में मन्दता आई
और पात्र को अनुभूत हुआ कि उसके पदों को आगे बढ़ने से रोक कर अपनी ओर आकृष्ट कर रहा है
कोई विशेष पुण्य-परिपाक ! पात्र की गति को देख कर और सचेत हो, श्रद्धा-समवेत हो अति मन्द भी नहीं अति अमन्द भी नहीं, मध्यम मधुर स्वरों में अभ्यागत का स्वागत प्रारम्भ हुआ :
'भो स्वामिन् ! नमोस्तु ! नमोस्तु ! नमोस्तु ! अत्र : अत्र ! अत्र ! तिष्ठ ! तिष्ट ! तिष्ठ !' यूँ सम्बोधन-स्वागत के स्वर दो-तीन बार दोहराये गये साथ-ही-साथ, धीमे-धीमे हिलने वाले
322 :: पूक माटी