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गड़-गड़ाहट ध्वनि करते सजल, लोचन-युगल। साबण की चौंसठ धार पात्र के पाद-प्रान्त में प्रणिपात करते हैं."
फिर "तो. धरती ने अनायास, सहज रूप से बादल की कालिमा को धो डाला, अन्यथा वर्षा के बाद बादल-दल वह बिमल होता क्यों ?
कुम्भ के मुख से कविता सुनी कम शब्दों में, सार के रूप में, दाता की गौरव-गाथा आचार-संहिता ही सामने आई, आदर्श में अपना मुख दिखा विमुख हुआ जो आदर्श जीवन से, जिस मुख पर बेदाग होने का दम्भ-भर दमक रहा था। सेट की आँखें खुल गई, वह अपने को संयत बनाता, सब कुछ भ्रान्तियाँ धुल गईं।
मूक माटी :: 21