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दोनों हाथ कुछ ऊपर उठा एक पद धरती पर निश्चल जमाते । एक पद पी.की सारखी । . .. : .................. एड़ी के बल से गेंद को टोकर दे कर बालक ज्यों देखता रह जाता, पवन देखता रह गया।
अब क्या पूछो ! बादल दल के साथ असंख्य ओले सिर के बल जा कर सागर में गिरते हैं एक साथ, पाप-कर्म के वशीभूत हो कर भयंकर दुःखापन्न नरकों में गोलादे लेते शठ-नायक नारक गिरते ज्यों।
इधर कई दिनों के बाद, निराबाध निरभ्र नील-नभ का दर्शन । पवन का हर्षण हुआ उत्साह उल्लास से भरा सार-मण्डल कह उठा, कि। 'धरती की प्रतिष्ठा बनी रहे, और हम सबकी
धरती में निष्ठा धनी रहे, बस।" अणु-अणु कण-कण ये बन-उपवन और पवन भानु की आभा से धुल गये हैं।
22 :: मृक माटी