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एक हाथ में कुम्भ ले कर,... एक हाथ में लिय कंकर से कुम्भ को बजा-बजा कर जब देखने लगा बह'' कुम्भ ने कहा विस्मय के स्वर में"क्या अग्नि-परीक्षा के बाद भी कोई परीक्षा-परख शेष है, अभी ? करो, करो परीक्षा ! पर को परख रहे हो अपने को तो परखो जरा ! परीक्षा लो अपनी अब ! बजा-बजा कर देख लो स्वयं को, कौन-सा स्वर उभरता है वहाँ सुनो उसे अपने कानों से ! काक का प्रलाप हैं,
क्या गधे का पंचम आलाप ? परीक्षक बनने से पूर्व परीक्षा में पास होना अनिवार्य है, अन्यथा उपहास का पात्र बनेगा वह।" इस पर सेवक ने कहा शालीनता से - "यह सच है कि तुमने अग्नि-परीक्षा दी है,
परन्तु
अग्नि ने जो परीक्षा ली है तुम्हारी वह कहाँ तक सही है, यह निर्णय तुम्हारी परीक्षा के बिना सम्भव नहीं है। बानी,
मूक माटी :: 30५