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कुछ भी नहीं है। मूलभृत। पहायं ही मूल्यवान होता है। धन कोई मत भूत वरन् है ही नहीं धन का जीवन पराश्रित है पर कं लिए है, कानिक : हाँ : हो !! धन से अन्य चम्तुओं का मूल्य ऑका जा सकता हैं वह भी आवश्यकतानुसार, कभी अधिक कभी हीन और कभी औपचारिक और यह सब निकों पर आधारित है। धनिक और निर्धन - ये दोनों वस्तु के सही-सही मूल्य को स्वप्न में भी नहीं आँक सकते, कारण, धन हीन दीन-हीन होता है प्रायः और निक वह विषयान्ध, मदाधीन !!
उपहार के रूप में भी राशि स्वीकृत नहीं हुई तब, संयक ने शिल्पी को सादर धन के वदल में धन्यवाद दिया
और
चल दिवा घर, कुम्भ ली सानन्द !
30 :: म
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