________________
मांगलिक कुम्भ. रखा गया। अप्ट पहलूदार चन्दन की चौकी पर ।
प्रतिदिन की भाति प्रभु की पूजा को सेठ जाता है, पुण्य के परिपाक से धर्म के प्रसाद से, जो मिला महाप्रासाद के पंचम-खण्ड पर जहाँ चैत्यालय स्थापित है, रजत-सिंहासन पर रजविरहित प्रभु की रजतप्रतिमा
अपराजिता विराजिता है। सर्व-प्रथम परम श्रद्धा से वन्दना हुई प्रभु की, फिर अभिषेक किया गया प्रभु का; स्वयं निर्मल निमलता का कारण गन्धोदक सर पर लगा लिया सेट ने सादर"सानन्द।
फिर, जल से हाथ धो कर प्रतिमा का प्रक्षालन किया विशुद्ध-शुभ्र वस्त्र से, पाप-पाखण्डों से परिग्रह-खण्डों से मुक्त असंपृक्त त्यागी वीतरागी की पूजा की अष्टमंगल द्रव्य ले भाव-भक्ति से चाव-शक्ति से सांसारिक किसी प्रलोभनवश नहीं,
2 :: पूक माटी