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कंकम का पुट देखते ही बनता है ! हनदी कुंकम केसर चन्दन ने अपनी महक से माहौल को मुग्ध-मूदित किया।
मृदुल-मंजुल-समता-समूह हरित हँसी लेमोजदान-प: - चार-पाँच पान खाने के कुम्भ के मुख पर रखे गये। खुली कमल की पॉखुरी-सम जिनके मुखाग्न बाहर दिख रहे हैं
और उनके बीच में उन्हें सहलाने एक श्रीफल रखा गया जिस पर हलदी-कुंकम छिड़के गये। इस अवसर पर श्रीफल ने कहा पत्रों को, कि "हमारा तन कठोर है तुम्हारा मृदु, और
यह काठिन्य तुम्हें अच्छा नहीं लगेगा। आज तक इस तन को मृदुता ही रुचती आई.
तब संसार-पथ था यह पथ उससे विपरीत है ना ! यहाँ पर आत्मा की जीत है ना ! इस पथ का सम्बन्ध नन से नहीं है, तन गौण, चेतन काम्य हैं
।। :: भृन्क माटी