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खोल देते हैं
प्रकृति और पुरुष के भेद,
हाथ की गदिया और मध्यमा का संघर्ष
स्पर्श पाकर
धा धिन् धिन्धा"
...
था "धिन् धिन् "धा" वेतन- भिन्ना चेतन-भिन्ना, ता" तिन तिन ता
ता तिन तिन ता'''
का तन "चिन्ता, का तन चिन्ता ? यूँ घूँ यूँ !
ग्राहक के रूप में आया सेवक
चमत्कृत हुआ वह
मन-मन्त्रित हुआ उसका
तन तन्त्रित स्तम्भित हुआ
कुम्भ की आकृति पर
और
शिल्पी के शिल्पन चमत्कार पर। यदि मिलन हो
चेतन चित् चमत्कार का
फिर कहना ही क्या !
चित् की चिन्ता, चीत्कार चन्द पलों में चौपट हो चली जाती कहीं बाहर नहीं,
300 मूत्र माटी
सरवर की लहर सरवर में ही समाती है।
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कुम्भ का परीक्षण हुआ निरीक्षण हुआ, फिर