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तवक चुन लेता है कुम्भ एक-दो लघु, एक-दो गुरु
और
शिल्पी के हाथ में
मूल्य के रूप में
समुचित धन देने का प्रयास हुआ
कि
कुम्भकार बोल पड़ा
"आज दान का दिन है आदान-प्रदान लेन-देन का नहीं, समस्त दुर्दिनों का निवारक है यह प्रशस्त दिनों का प्रवेश द्वार !
सीप का नहीं, मोती का दीप का नहीं, ज्योति का सम्मान करना हैं अब ! चेतन भूल कर तन में फूले धर्म को दूर कर, धन में झूले सीमातीत काल व्यतीत हुआ इसी मायाजाल में,
अब केवल अविनश्वर तत्त्व को समीप करना है,
समाहित करना है अपने में, बस !
वैसे. स्वर्ण का मूल्य है रजत का मूल्य है
कण हो या मन हो
प्रति-पदार्थ का मूल्य होता ही है,
परन्तु,
धन का अपने आप में मूल्य
पृक माटी 07