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सारे ग"म यानी सभी प्रकार- दुःख प'ध यानी पद-स्वभाव
और नि बानी नहीं, दुःख आत्मा का स्वभाव-धर्म नहीं हो सकता, मोह-कर्म से प्रभावित आत्माका विभाव-परिणमन मात्र हैं वह ।
नैमित्तिक परिणाम कचित पराये हैं। इन सप्त-स्वरों का भाव समझना ही सही संगीत में खोना है
सही संगी को पाना है। ऐसी अद्भुत शक्ति कुम्भ में कहाँ से आई, यूं सोचतं सेवक को उत्तर मिलता है कुम्भ की ओर से
कि "यह सब शिल्पी का शिल्प है, अनल्प श्रम, दृढ़ संकल्प सत-साधना-संस्कार का फल । और सुनी, यह जो मेरा शरीर घनश्याम-सा श्याम पड़ गया है सो"जला नहीं। जिस भांति वाय-कला-कुशल शिल्पी । मृदंग-मुख पर स्याही लगाता है उसी भांति शिल्पी ने मेरे अंग-अंग पर, स्याही लगा दी हैं, जो भांति-भाँति के बोल
पूक मारी :: 2015