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________________ खोल देते हैं प्रकृति और पुरुष के भेद, हाथ की गदिया और मध्यमा का संघर्ष स्पर्श पाकर धा धिन् धिन्धा" ... था "धिन् धिन् "धा" वेतन- भिन्ना चेतन-भिन्ना, ता" तिन तिन ता ता तिन तिन ता''' का तन "चिन्ता, का तन चिन्ता ? यूँ घूँ यूँ ! ग्राहक के रूप में आया सेवक चमत्कृत हुआ वह मन-मन्त्रित हुआ उसका तन तन्त्रित स्तम्भित हुआ कुम्भ की आकृति पर और शिल्पी के शिल्पन चमत्कार पर। यदि मिलन हो चेतन चित् चमत्कार का फिर कहना ही क्या ! चित् की चिन्ता, चीत्कार चन्द पलों में चौपट हो चली जाती कहीं बाहर नहीं, 300 मूत्र माटी सरवर की लहर सरवर में ही समाती है। I कुम्भ का परीक्षण हुआ निरीक्षण हुआ, फिर
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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