________________
:
अपनी प्यास बुझाये बिना औरों को जल पिलाने का संकल्प मात्र कल्पना है,
माय अल्पना है।' : . . . . . . . . . :: लगभग रुदन की ओर मुड़ी कुम्भ की याचना सुन कर उसकी गम्भीर स्थिति पर, उस उर की पीर की अति पर, सोच रहा है उदार-उन्नत उर व्यथित हुआ कुम्भकार का भी।
और,
कुम्भ में धैर्य के प्राण फूंकने उसकी क्षुधा-तृषा के वारण हेतु कुछ भोजन-पान ले कर अवा की ओर उद्यत हुआ, कि कुम्भकार की गहरी निद्रा टूट गई,
और वह स्वप्न की मुद्रा छूट गई !
वैसे, जब चाहे मनचाहे स्वप्न कहाँ दिखते हैं ! तभी तो "प्रथम, स्वप्निल दशा पर शिल्पी को हँसी आई, फिर, उसकी आँखें गम्भीर होती गईं।
मूक मादी । ५१